Hindi Kala presents you Rahim Ke Dohe. Also, known as Rahim Das who lived in India during the rule of Mughal emperor Akbar, who was his mentor, also.
Rahim Ke Dohe
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि। ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
अर्थ : जैसे ही कोई कुछ मांगता है, आंखों का मान, सम्मान और प्यार चला जाता है।मांगने वाले व्यक्ति का अभिमान चला गया, उसकी इज्जत चली गई, और उसकी आँखों से प्यार की भावना चली गई। ये तीनों तब चले गए जब उन्होंने कहा कि यह कुछ देता है, यानी जब भी आप किसी से कुछ मांगते हैं। यानी भिक्षा मांगना अपने आप को अपनी ही नजरों से गिरा देना है, इसलिए कभी भीख मांगने जैसा कोई काम न करें।
आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधु सनेह। जीरन होत न पेड़ ज्यौं, थामे बरै बरेह॥
अर्थ :- गाढ़े समय ( बुरे समय ) पर, विपदा ( समस्या ) के समय स्नेही बंधु ( अपना मानने वाले ) ही काम आते हैं। जैसे बरगद अपनी जटाओं का सहारा मिलने से कभी जीर्ण अथवा कमज़ोर नहीं होता है। अर्थात् बरगद अपनी लटकने वाली जटाओं से धरती से पोषक तत्त्व लेकर सदा नया बना रहता है।
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है इस दुनिया में बहुत मुश्किल है अगर आप सत्य का साथ देते है है दुनिया आप से नाराज रहेंगे अगर आप इस दुन्या में झूठ बोलते है तो आपको कभी भगवान नहीं मिलेंगे।
अधम वचन काको फल्यो, बैठि ताड़ की छांह। रहिमन काम न आय है, ये नीरस जग मांह।।
अर्थ : संत रहीम दास जी कहते हैं जैसे ताड़ की छाया में बैठने से कोई फल नहीं मिलता, इसी प्रकार निंदनीय वचन फलदायी नहीं होते। जो मनुष्य संसार में आकर किसी के काम नहीं आते, वे मनुष्य संसार में रसहीन होते हैं ।
Rahim Ke Dohe
अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय। जिन आँखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है इन आँखों में काजल और सुरमा लगाना व्यर्थ है जो लोग इन आँखों में ईश्वर को बसाते है वे लोग धन्य होते है
असमय परे रहीम कहि, माँगि जात तजि लाज। ज्यों लछमन माँगन गये, पारासर के नाज ॥
अर्थ :- रहीम कहते हैं कि बुरा समय आने पर, कठिनाई आने पर या मजबूरी में व्यक्ति लज्जा ( शर्म ) छोड़कर माँग लेता है। जैसे लक्ष्मण भी विवशता में पाराशर मुनि के पास अनाज माँगने गए थे।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥ (Bada Hua To Kya Hua, Jaise Ped Khajoor Panthi Ko Chhaya Nahi, Phal Laage Ati Door)
अर्थ: रहीम दास जी कहते है खजूर के पेड़ की भाँति बड़े होने का कोई फायदा नहीं है। खजूर के रूप में यह बहुत बड़ा होता है, लेकिन इसका फल इतना दूर होता है कि इसे तोड़ना मुश्किल होता है।
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय। ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
अर्थ : जब ओछे ध्येय के लिए लोग बड़े काम करते हैं तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने धोलागिरी को उठाया था तो उनका नाम 'गिरिधर' नहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को छति पहुंचाई थी, पर जब श्री कृष्ण ने पर्वत उठाया तो उनका नाम 'गिरिधर' पड़ा क्योंकि उन्होंने सर्व जन की रक्षा हेतु पर्वत को उठाया था।
Rahim Ke Dohe
बड़ माया को दोस यह जो कबहुॅ घटि जाय तो रहीम गरीबो भलो दुख सहि जिए बलाय।
अर्थ : धनी आदमी के गरीब हो जाने पर बहुत तकलीफ होता है।इससे तो गरीबी अच्छा है। जो समस्त दुख सह कर भी वह जी लेता है।सांसारिक माया से मोह करना ठीक नही है।
भावी या उनमान की पांडव बनहिं रहीम तदपि गौरि सुनि बाॅझ बरू है संभु अजीम।
अर्थ : भविष्य या होनी ईश्वर की भयानक शक्ति है। इसने पांडवों जैसे शक्तिशाली को जंगल में रहने को मजबूर कर दिया। महादेव की पत्नी गौरी पार्वती को बाॅझ पुत्रहीन हीं रहना पड़ा। होनी से किसी दया की आशा व्यर्थ है।
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय. रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
अर्थ : मनुष्य को सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।
चाह गई चिन्ता मिटी मनुआ बेपरवाह जिनको कछु न चाहिये वे साहन के साह।
अर्थ : जिसकी इच्छा मिट गई हो और चिन्तायें समाप्त हो गई हों;जिन्हें कुछ भी नही चाहिये और जिसके मन में कोई फिक्र न हो-वस्तुतःवही राजाओं का राजा शहंशाह हैं।
Rahim ke Dohe in hindi
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
अर्थ :- बड़ों को क्षमा शोभा देती है और छोटों को उत्पात (बदमाशी)। अर्थात अगर छोटे बदमाशी करें कोई बड़ी बात नहीं और बड़ों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिए। छोटे अगर उत्पात मचाएं तो उनका उत्पात भी छोटा ही होता है। जैसे यदि कोई कीड़ा अगर लात मारे भी तो उससे कोई हानि नहीं होती।
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय। जो रहीम दीनहिं लखत, दीनबन्धु सम होय ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है ग़रीबों की नज़र सब पर पड़ती है, मगर ग़रीब को कोई नहीं देखता। जो प्यार से गरीबों की परवाह करता है, उनकी मदद करता है,वह उनके लिए दीनबंधु भगवान के समान हो जाता है।
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन। लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते देने वाला भगवान है जो हमें दिन-रात दे रहा है। लेकिन लोग समझते हैं कि मैं दे रहा हूं, इसलिए दान देते समय मेरी आंखें अनजाने में शर्म से नीचे गिर जाती हैं।
धन दारा अरु सुतन , सो लग्यो है नित चित । नहि रहीम कोऊ लख्यो , गाढे दिन को मित॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैं कि मनुष्य को सदैव अपना मन धन, यौवन और संतान में नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि जरूरत पड़ने पर उनमें से कोई भी आपका साथ नहीं देगा! अपना मन भगवान की भक्ति में लगाएं क्योंकि मुश्किल की घड़ी में वही आपका साथ देगा।
Rahim Ke Dohe
दिब्य दीनता के रसहि का जाने जग अंधु भली बिचारी दीनता दीनबंधु से बंधु।
अर्थ : गरीबी में बहुत आनंद है।यह संसार में धन के लोभी अंधे नही जान सकते हैं। रहीम क को अपनी गरीबी प्रिय लगती है कयोंकि तब उसने गरीबों के सहायक दीनबंधु भगवान को पा लिया है।
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं। जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं॥
अर्थ : कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है।
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
अर्थ: दुख में सभी लोग याद करते हैं, सुख में कोई नहीं। यदि सुख में भी याद करते तो दुख होता ही नहीं।
दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब पहिचानि। सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते कि जिंदगी में जब बुरे दिन आते हैं तो हर कोई उसे पहचानना भूल जाता है। उस समय, यदि आप दयालु लोगों से सम्मान और प्यार प्राप्त करना जारी रखते हैं, तो धन खोने का दर्द कम हो जाता है।
अर्थ : किसी काम को पूरे मनोयोग से करने से सब काम सिद्ध हो जाते हैं। एक हीं साथ अनेक काम करने से सब काम असफल हो जाता है। बृक्ष के जड़ को सिंचित करने से उसके सभी फल फूल पत्ते डालियाॅ पूर्णतः पुश्पित पल्लवित हो जाते हैं।
गरज आपनी आप सों रहिमन कही न जाय जैसे कुल की कुलबधू पर घर जात लजाय ।
अर्थ : सम्मानित व्यक्ति अपने निकटतम व्यक्ति से भी जरूरत पढ़ने पर याचना नहीं कर पाते हैं। उॅचे कुल की खानदानी बहू जिस प्रकार किसी दूसरे के घर में जाने में लज्जा महसूस करती है।
गुनते लेत रहीम जन सलिल कूपते काढि कूपहु ते कहुॅ होत है मन काहू के बाढि।
अर्थ : प्यास लगने पर लोग रस्सी की मदद से कुआँ से जल निकालते हैं। इसी तरह हृदय मन के भीतर से बात जानने के लिये विश्वास की रस्सी से मदद ली जाती है।
हित रहीम इतनै करैं जाकी जिती बिसात नहि यह रहै न वह रहै रहे कहन को बात ।
अर्थ : हमें दूसरों की भलाई अपने सामथ्र्य के अनुसार हीं करनी चाहिये। छोटी छोटी भलाई करने बाले भी नहीं रहते और बड़े उपकार करने बाले भी मर जाते हैं-केवल उनकी यादें और बातें रह जाती हैं।
rahim das ke dohe
जब लगि विपुन न आपनु तब लगि मित्त न कोय रहिमन अंबुज अंबु बिन रवि ताकर रिपु होय।
अर्थ : यदि आप धनी नहीं हैं तो आपका कोई मित्र नही होगा।धनी बनते हीं मित्र बन जाते हैं। सूर्य के प्रकाश मे कमल खिलता है लेकिन तालाब का पानी सूख जाने पर वही सूर्य कमल को सुखा देता है।धन जाने पर मित्र शत्रु बन जाते हैं।
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह। धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह॥
अर्थ : रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है – सहन करनी चाहिए, क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है। अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए।
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
अर्थ :- जो गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं। गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं॥
अर्थ : रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि गिरिधर (कृष्ण) को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती।
Rahim Ke Dohe
जो रहीम दीपक दसा, तिय राखत पट ओट। समय परे ते होत है,याही पट की चोट॥
अर्थ : रहीमदास जी कहते हैं कि जब रात होती है तब दीपक ( दिये ) की आवश्यकता होती है तो जो औरत उसे हवा का झोंका आने पर अपने पल्लू से ढक कर बुझने से बचा लेती है। लेकिन जब सुबह उसका समय ख़तम हो जाता है अर्थात सूर्य निकल जाता है तब वही औरत उसे अपने पल्लू की चोट मारकर उसे बुझा देती है।
जो रहीम होती कहूॅ प्रभु गति अपने हाथ तो काधों केहि मानतो आप बढाई साथ।
अर्थ : यदि लोग स्वयं अपने लाभ नुकसान; प्रतिष्ठा इत्यादि को मन मुताबिक कर पाते तो वे किसी को अपने से अधिक नही मानते। इसी कारण ईश्वर ने मनुष्य को कमजोर बनाया है। ताकत के साथ सज्जनता आवश्यक है।
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
अर्थ : दीपक के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता है। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ-साथ अंधेरा होता जाता है।
जो रहीम मन हाथ है तो तन कहुॅ किन जाहिं ज्यों जल में छाया परे काया भीजत नाहिं।
अर्थ : जिसको अपने मन पर नियंत्रण है उसका शरीर कहीं इधर ईधरनही जा सकता है। पानी में यदि परछाई पड़ता है तो उससे शरीर नही भीगता है। अतः मन को साधने-नियंत्रित करने से शरीर अपने आप नियंत्रित हो जाता है।
Rahim Ke Dohe
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय। प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
अर्थ : ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥ (Jo Rahim Uttam Prakati, Ka Kari Sakat Kusang Chandan Vish Vyape Nahi, Liptey Rahat Bhujang)
अर्थ : रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती. जहरीले सांप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।
ज्यों चैरासी लख में मानुस देह त्यों हीं दुर्लभ जग में सहज सनेह ।
अर्थ : जिस तरह चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य का शरीर प्राप्त है, उसी प्रकार इस जगत में सहजता सुगमता से स्नेह प्रेम प्राप्त करना भी दुर्लभ है।
कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छाँह। रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम बाँह॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है स्वर्ग का सुख और कल्पवृक्ष की छाया नहीं चाहिए मुझे वह ढाक का पेड़ बहुत पसंद है जहां मैं अपने प्रीतम के गले में हाथ डालकर बैठ सकता हूं।
Rahim Das Ke Dohe
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैजिनके पास सम्पति होती है उनके पास मित्र भी आपने आप बहुत बन जाते है लेकिन सच्चे मित्र तो वे ही हैं जो विपत्ति की कसौटी पर कसे जाने पर खरे उतरते हैं। अर्थात विपत्ति में जो साथ देता है वही सच्चा मित्र है।
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है दो विपरीत सोच वाले व्यक्तियों की आपस में नहीं बनती हैबेर के पेड़ पर काँटे लगें तो केले का पेड़ कोमल होता है। हवा के झोंके के कारण बेर की शाखाएँ चंचलता से हिलती हैं, तो केले के पेड़ का हर हिस्सा फट जाता है।
कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय। माया ममता मोह परि, अन्त चले पछिताय ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है ज़रा सोचिए कि कितना जीवन बचा है और कितना व्यर्थ गया है क्योंकि माया, प्रेम और मोह संसार के क्षणिक सुख है लेकिन आध्यात्मिक सुख स्थायी सुख है |
अर्थ : कुशलता खैरियत हत्या खाॅसी खुशी दुश्मनी प्रेम और शराब का पीना छिपाये नही छिपते। सारा संसार इन्हें जान जाता हैं।
Rahim Ke Dohe
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय॥
अर्थ : खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।
लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार । जा हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है तलवार लोहे अथवा लोहार की नहीं होती तलवार उस वीर की कहलाएगी जो शौर्य से शत्रु को मारकर अपना जीवन समाप्त कर लेता है।
मान सहित विष खाय के, संभु भए जगदीस । बिना मान अमृत पिए, राहु कटायो सीस ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते हैआदर से जब शिव ने विष निगल लिया तो वे जगदीश कहलाए, लेकिन आदर के अभाव में राहु ने अमृत पीकर उनका सिर काट दिया गया।
अर्थ: रहीम दास जी कहते है माली को आते देख कलियाँ कहती हैं कि आज उसने फूल चुन लिए, लेकिन कल हमारी भी बारी आएगी, क्योंकि कल हम भी खिलेंगे और फूल बनेंगे।
Rahim Ke Dohe
मांगे मुकरि न को गयो , केहि न त्यागियो साथ। मांगत आगे सुख लह्यो , ते रहीम रघुनाथ।।
अर्थ: रहीमदास जी कहते कि मनुष्य जो मांगता है वह देने से हर कोई इंकार करता है और कोई उसे नहीं देता। उस व्यक्ति में सेलोग अपना साथ भी छोड़ देते है। उस व्यक्ति से खुश रहना बेहतर है जो पूछता है कि भगवान स्वयं किस पर उदार है।
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय। फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
अर्थ : मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं परन्तु यदि एक बार वे फट जाएं तो करोड़ों उपाय कर लो वे फिर वापस अपने सहज रूप में नहीं आते।
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत । ते रहिमन पसु ते अधिक, रीझेहुं कछु न देत ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है संगीत की ध्वनि से मोहित होकर, हिरण अपने शरीर को शिकारी को सौंप देता है। और मनुष्य धन से अपना जीवन खो देता है। लेकिन वे लोग भी जानवर से मर गए, जो संतुष्ट होने पर भी कुछ नहीं देते।
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन। अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन॥
अर्थ : वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है। उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।
अर्थ : कम दिमाग के व्यक्तियों से ना तो प्रीती और ना ही दुश्मनी अच्छी होती है। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों को विपरीत नहीं माना जाता है।
रहिमन छोटे नरन सों होत बडो नहि काम मढो दमामो ना बने सौ चूहे के चाम ।
अर्थ : छोटे लोगो से कोई बड़ा काम नही हो सकता है।सौ चूहों के चमड़े से भी एक नगाड़े को नही मढा जा सकता है।अपने सामर्थ्य को पहचान कर ही काम करना चाहिये ।
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर। जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
अर्थ : जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।
rahiman dhaga prem ka doha
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
अर्थ : रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए। जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहां तलवार बेचारी क्या कर सकती है?
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय। टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय॥ (Rahiman Dhaga Prem Ka, Mat Toro Chatkaay Toote Pe Phir Naa Jure, Jure Gaanth Pari Jaye)
रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
रहिमन' गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं। आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहिं॥
अर्थ रहीमदास जी कहते है हृदय की गली बहुत सकरी होती है इसमें दो लोग नहीं ठहर सकते है या तो आप इसमें अहंकार को बसा ले या फिर इस्वर को
अर्थ: रहीमदास जी कहते कि बड़े लोग वही होते है जिनको अहंकार नहीं होता है यह सोचना गलत है कि एक अमीर आदमी बड़ा होता है आदमी बड़ा वह होता है उसे कभी किसी चीज पर गर्व नहीं होता है। सुख-दुख में सबकी सहायता करता है, सबका भला सोचता है, अर्थात् सारे जगत् का भार वहन करता है, वह शेषनाग कहलाने योग्य है।
rahim ji ke dohe
रहिमन मनहि लगाई कै देखि लेहु किन कोय नर को बस करिबो कहा नारायन बस होय ।
अर्थ : किसी काम को मन लगा कर करने से सफलता निश्चित मिलती है। मन लगा कर भक्ति करने से आदमी को कया भगवान को बस में किया जा सकता है।
रहिमन निज मन की ब्यथा मन ही रारवो गोय सुनि इठि लहै लोग सब बंटि न लहै कोय।
अर्थ : रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥ (Rahiman Paani Rakhiye, Bin Paani Sab Soon Paani Gaye Na Ubare, Moti, Manush, Choon)
अर्थ :- इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।
rahim amritwani
रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच । मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते कि दान करते समय स्वार्थ,, मित्रता आदि के बारे में नहीं सोचना चाहिए। राजा शिव ने अपने शरीर का दान दिया और दधीचि ऋषि ने अपनी हड्डियों का दान किया। इसलिए परोपकार में अपने प्राणों की आहुति देने में संकोच नहीं करना चाहिए।
रहिमन रहिबो व भलो जौ लौ सील समूच सील ढील जब देखिये तुरत कीजिए कूच।
अर्थ : किसी के यहाॅ तभी तक रहें जब तक आपकी इज्जत होती है। मान सम्मान में कमी देखने पर तुरन्त वहां से प्रस्थान कर जाना चाहिये ।
रहिमन रहिला की भली जो परसै चित लाय परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय।
अर्थ : यदि भोजन को प्रेम एवं इज्जत से परोसा जाये तो वह अत्यधिक सुरूचिपूर्ण हो जाता है। लेकिन मलिन मन से परोसा गया भोजन जले हुये मैदा से भी खराब होता है। मैदा के इस भोजन को जला देना हीं अच्छा है।
रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सम्मान। घटता मान देखिये जबहि, तुरतहि करिए पयान।।
अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि मनुष्य को तब तक कहीं पर रहना चाहिए जब तक उसके पास सम्मान और सेवा है। जब आप नोटिस करें कि आपके सम्मान में कमी आ रही है, तो आपको तुरंत वहां से निकल जाना चाहिए।
rahim ke nitiparak dohe
रहिमन वे नर मर चुके जे कहॅु माॅगन जाॅहि उनते पहिले वे मुए जिन मुख निकसत नाहि।
अर्थ : जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगने के लिए जाता है वो तो मरे हुए हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुंह से कुछ भी नहीं निकलता है।
रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान । भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते कि जिसके पास बुद्धि नहीं है और जिसे शिक्षा पसंद नहीं है, जिसने धर्म और दान नहीं किया है और इस दुनिया में आकर प्रसिद्धि नहीं पाई है; वह व्यक्ति व्यर्थ और पृथ्वी पर एक बोझ बनकर पैदा हुआ है । एक अनजान व्यक्ति और एक जानवर के बीच सिर्फ पूंछ का अंतर है। यानी यह व्यक्ति बिना पूंछ वाला जानवर है |
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
अर्थ : कुछ दिन रहने वाली विपदा अच्छी होती है। क्योंकि इसी दौरान यह पता चलता है कि दुनिया में कौन हमारा हित या अनहित सोचता है।
अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए, क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।
rahim dohe
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात। सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।
अर्थ : रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है। सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।
समय परे ओछे बचन, सब के सहै रहीम। सभा दुसासन पट गहे, गदा लिए रहे भीम॥
अर्थ : रहीम कहते हैं कि जब समय सही न चल रहा हो तो समर्थ इंसान को भी ओछे ( बुरे ) वचन सुनने पड़ते हैं। यह समय का ही खेल है कि बलवान गदाधारी भीम के सामने दुश्शासन द्रोपदी का चीर हरण करता रहा और भीम हाथ में गदा होते हुए भी नीची आँख किए बैठे रहे।
स्वासह तुरिय जो उच्चरै तिय है निश्चल चित्त पूत परा घर जानिये रहिमन तीन पवित्त।
अर्थ : यदि घर का मालिक अपने पारिवारिक कत्र्तब्यों को साधना की तरह पूरा करता है और पत्नी भी स्थिर चित्त और बुद्धिवाली हो तथा पुत्र भी परिवार के प्रति समर्पित योग्यता वाला हो तो वह घर पवित्र तीनों देवों का वास बाला होता है।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
अर्थ : वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीती है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।
rahim ke pad
तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस। रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है जहा कुछ प्राप्त हो सकता है, उससे ही कुछ अपेक्षा करना उचित है।क्योकि सूखा तलाब किसी की प्यास नहीं बुझा सकता है |
उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति हथियार। रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न बार ॥
अर्थ: रहीमदास जी कहते है संकट में फंसे सांप, सबसे परेशान घोड़े, पीड़ित महिला, क्रोध की आग में जलने वाले राजा,कुटिल व्यक्ति और तेज धार वाले हथियार से हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए।इन्हे पलटे देर नहीं लगती ये आपका अहित भी कर सकते है इनसे आपको सावधान रहना चाहिए।
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
अर्थ : रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है।
याते जान्यो मन भयो जरि बरि भसम बनाय रहिमन जाहि लगाइये सोइ रूखो ह्वै जाय।
अर्थ : रहीम जिससे भी मन हृदय लगाते हैं वही दगा धोखा दे जाता है। इससे रहीम का हृदय जलकर राख हो गया है। जो इश्र्या द्वेश से ग्रसित हो उससे कौन अपना हृदय देना चाहेगा ।