Movie/Album: गृह प्रवेश (1979)
Music By: कानू रॉय
Lyrics By: गुलज़ार
Performed By: भूपेंद्र सिंह
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते हैं दो आँसू
सुना है आबशारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
ख़ुदा-रा अब तो बुझ जाने दो
इस जलती हुई लौ को
चराग़ों से मज़ारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से
पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
तुम्हारा क्या, तुम्हें तो
राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम ख़ाक-सारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
from Lyrics In Hindi - लफ़्ज़ों का खेल https://hindilyricspratik.blogspot.com/2021/05/machal-ke-jab-bhi-bhupinder-griha-pravesh.html
Music By: कानू रॉय
Lyrics By: गुलज़ार
Performed By: भूपेंद्र सिंह
मचल के जब भी आँखों से
छलक जाते हैं दो आँसू
सुना है आबशारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
ख़ुदा-रा अब तो बुझ जाने दो
इस जलती हुई लौ को
चराग़ों से मज़ारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से
पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
तुम्हारा क्या, तुम्हें तो
राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम ख़ाक-सारों को
बड़ी तक़लीफ़ होती है
मचल के जब भी आँखों से...
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