Mohabbat Usey Bhi Hai By Kirti Chauhan | The Social House Poetry



Kriti Chauhan recited a beautiful poetry Mohabbat Usey Bhi Hai House which is a beautiful and emotional poetry.





Mohabbat Usey Bhi Hai Poetry :- Kriti Chauhan recited a beautiful poetry Mohabbat Usey Bhi Hai House which is a beautiful and emotional poetry based on a loving couple initiating a new love. This beautiful poetry Mohabbat Usey Bhi Hai has been written by Kriti Chauhan herself.



Mohabbat Usey Bhi Hai

झूठ है कि उसे याद हूं मैं 
इस बहाने से ही आजाद हूं मैं

रिवायत है अपने जख्म सबको गहरे लगते हैं 
मुझको सुनने वाले आज मुझी को बहरे लगते हैं 
और जो मोहब्बत पर विश्वास के किस्से सुनाते हैं वो
मोहब्बत जानती है उसपे शक के कितने पहरे लगते हैं

क्या सुनाएं? हाल सुनाएं? ख़्याल सुनाएं? या सुनाएं हालात तुम्हें ?
खुद को ठीक बताएं? अच्छा बताएं? बुरा बताएं? या बताएं जज़्बात तुम्हे? 
दिन को रात बताएं? रात को दिन बताएं? वो साथ नहीं अब ये बताएं? अब इससे ज्यादा और क्या बताएं?
छोड़ जाने की वजह बताएं? या साथ को उसके कजा बताएं?
जेहन में छिपे वो दाग़ दिखाएं? या अब इससे खुलकर और क्या बताएं?
उस पर लिखी वो नज्म सुनाएं? या उसकी झूठी कसम गिनाएं?
उससे सीखा तुम्हें बताएं? हां बात घुमाना तुम्हें सिखाएं?
जान था वो तुम्हें ये बताएं? या जिस्म पर उसका नाम दिखाएँ ?
काफी है या और सुनाएं? या आंखों से आंसू गिराएं?

खुद को गिराकर रिश्ता बचा रहे थे हम 
मोहब्बत उसे भी है खुद को बता रहे थे हम 
लौट आएगा वापस तो लिपट कर रोएंगे दोनों
खुद से फरेब बाखूबी निभा रहे थे हम
खास जरूरत नहीं थी उसको मेरी 
फिर भी बिन बुलाएं ही वापस जा रहे थे हम 
उसका जिक्र हुआ तो किस्सा सुना रहे थे हम 
उस किस्से में भी उन्हें अपना बता रहे थे हम
वक्त रहते खुद को आईना दिखा रहे थे हम 
कागज पर नाम लिखकर खुद ही मिटा रहे थे हम

उसे मेरी तरह लफ्जों में प्यार जताना नहीं आता 
मैं रूठ जाऊं अगर तो उसे मनाना नहीं आता 
छुपाता बहुत कुछ है उसे बताना नहीं आता
सालों बाद भी उसे तारीखें भूलाना नहीं आता
तंग बहुत करता है मगर उसे सताना नहीं आता
डांट भले दे मगर उसे रुलाना नहीं आता
उसके पास रहती हूं तो शहजादी सी रखता है 
बद्तमीजी तो दूर उसे तू कह बुलाना नहीं आता

हम संभाल लेंगे
साथ रहने के सौदे में खुशियां दांव पर लगी थीं 
पर फैसला तो यही किया था कि खुशी मिले या गम 
हम संभाल लेंगे

जब बातें बिगड़ेगी और रातें रोज झगड़ेंगी 
जब खुन्नस सर पे छाई होगी 
और तुम्हें पता होगा अब लड़ाई होगी 
हम संभाल लेंगे

जब उसका मेल इगो आड़े आने लगेगा 
और मेरा एटीट्यूड थोड़ा ज्यादा भाव खाने लगेगा 
हम संभाल लेंगे

तो कब आया वो मोड़ जब रिश्तों के सौदे में उसे मुनाफा कम लगने लगा
और उसने बस कह दिया कि अब बात मत करना मुझसे
और फिर बात हुई ही नहीं  
ना कभी उसने जिद की और ना मैंने पहल की 
तो मैंने भी एक टूटे दिल वाले आशिक़ की तरह खुद को समझाना शुरू कर दिया 
वो क्या है ना की तसल्लियां महफूज रखती है इरादे,
क्योंकि नाकाम होना किसको मंजूर है 
तो एक समय आया जब तसल्लियां साथ छोड़ने लगी थी और यादें वापस मोड़ने लगी थी 
जब उसे शिकायतें कम थी और उसकी परवाह ज्यादा

जब वो गलत थोड़ा कम था 
मेरा पिघलता सा मन था 
जब आंसुओं के पास बहाना था 
और मुझे बस वापस जाना था

तब... तब सवालों की दीवारों के बीच कैद पाती थी मैं खुद को 
चाहती थी कि एक बार इन दीवारों को गिराकर वो मुझसे पूछे कि 'ठीक हो तुम?'
और बदले में ना कह दूं पर जैसे ही मैं खुद को रोता हुआ पाती 
तो वो सवाल भी मेरे ख़्याल की तरह सवालों की दीवारों के नीचे दब जाते

बात कहा बिगड़ी? ये सवाल नहीं, महज एक बहस का मुद्दा था
जिस पर रोज घंटों मेरा दिल और दिमाग लंबी बहस करते थे
और थक जाते तो कहते तब, जब साथ रहने के सौदे में खुशियां दांव पर लगाई थीं। 

Written By:
Kirti Chauhan


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